दोस्तों इसके पीछे की कई सारी कथाएं हैं लेकिन आज
हम आपको लक्ष्मी-राजा बलि की कथा बताएंगे कथा
भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी है, भगवान
विष्णु ने वामन अवतार लेकर असुरों के राजा बलि से तीन पग भूमि का दान मांगा दानवीर बलि इसके लिए सहज राजी हो गया वामन ने पहले ही पग में धरती नापली तो बलि समझ गया कि ये वामन स्वयं भगवान विष्णु ही हैं। बलि ने विनय से भगवान विष्णु को प्रणाम किया और अगला पग रखने के लिए अपने शीश को
प्रस्तुत किया विष्णु भगवान बलि पर प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा असुर राज बलि ने वरदान में उनसे अपने द्वार पर ही खड़े रहने का वर मांग लिया।
इस प्रकार भगवान विष्णु अपने ही वरदान में फंस गए तब माता लक्ष्मी ने नारद मुनि की सलाह पर असुर राज बलि को राखी बांधी और उपहार के रूप में भगवान विष्णु को मांग लिया। इसी प्रकार महाभारत में भी जब श्री कृष्ण की उंगली पर चोट आई थी तब द्रौपदी ने
उनकी उंगली पर अपनी साड़ी का टुकड़ा बांदा था जिसको कि श्रीकृष्ण ने राखी माना था और द्रोपती चीरहरण के समय उनकी रक्षा करी थी।
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