कोहिनूर हीरे की कहानी ! Untold Story Of Koh-i-Noor Diamond




चलिए कोहिनूर हीरे की कहानी कहते हैं. यह कहा जाता है कि महिलाएं हीरे को लेकर दीवानी है पर कोहिनूर हीरे का इतिहास जानकर यह भ्रम दूर हो जाएगा.. पुरुषों ने इसके लिए बड़ी बड़ी लड़ाइयां लड़ी है.

कोहिनूर हीरा आंध्र प्रदेश की गोलकुंडा खदानों से मिला था. कोहिनूर आज इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के ताज की शोभा बढ़ाता है. कोहिनूर हीरे का सबसे पहला वर्णन बाबरनामा में मिलता है, परंतु तब इसका नामकरण नहीं हुआ था यह हीरा तब चर्चा में आया जब किसी ज्योतिषी ने कहा था कि यह हीरा अभिशापित है जो भी इस हीरे को पहनेगा वह संसार पर राज करेगा लेकिन उसका दुर्भाग्य भी साथ ही शुरू हो जाएगा. कोहिनूर के बाद के इतिहास को देखें तो यह बात बिल्कुल सत्य प्रतीत होती है. कोहिनूर को यह नाम नादिरशाह ने दिया कोह- इ - नूर यानी “रोशनी का पहाड़ ”लेकिन यह हीरा जिसके पास भी रहा उसके लिए मुसीबतों का पहाड़ ही सिद्ध हुआ. यह हीरा चौदहवीं शताब्दी की शुरुआत में काकतीय वंश के पास था और उनसे तुगलक शाह ने यह छीना था… कोहिनूर के आधिपत्य में लेने के बाद मुगल साम्राज्य को भारी तबाही का सामना करना पड़ा. कहते हैं शाहजहां ने इसे अपने सिहासन में लगाया था,, जिसके बाद उसकी पत्नी की भी मृत्यु हो गई और उसके बेटे औरंगजेब ने भी उसे नजरबंद कर लिया.. औरंगजेब ने इस हीरे की चमक बढ़ाने के लिए एक बार इसे एक जौहरी को दिया, हीरे को तराशने के दौरान उस जौहरी से हीरे के टुकड़े टुकड़े हो गए और यह हीरा 793 कैरेट की जगह 186 कैरेट का ही रह गया… आप सोच सकते हैं कि एक अनाड़ी के हाथ लगने से इस हीरे का कितना नुकसान हुआ? नादिरशाह जो कि एक फारसी शासक था उसने मुगल सल्तनत पर हमला करके कोहिनूर को अपने कब्जे में ले लिया तथा इसका नामकरण किया कोहिनूर. इसके कुछ साल बाद ही नादिरशाह की हत्या हो गई और यह हीरा अफगानिस्तान पहुंच गया. जिस शासक के पास यह पहुंचा वह शासक था अहमद शाह दुर्रानी जिसे राज सत्ता से निकाल दिया गया और वह कोहिनूर हीरे के साथ लाहौर पहुंचा और इसे महाराजा रणजीत सिंह को भेंट किया महाराजा रणजीत सिंह ने इस कोहिनूर के हीरे के बदले उससे उसका अफगानिस्तान का राज सिंहासन वापिस दिलवाया… आप खुद सोच सकते हैं कि कोहिनूर हीरे के लिए सब की दीवानगी कैसी थी,!!!!
यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती कोहिनूर हीरा प्राप्त करने के बाद महाराजा रणजीत सिंह जो कि अभी तक तक अजय माने जाते थे के बुरे दिन शुरू हो गए, उन्हें लकवा मार गया और बहुत इलाज के बाद भी वह बच नहीं सके. कहा जाता है कि मृत्यु के समय महाराजा रंजीत सिंह चाहते थे कि यह हीरा उड़ीसा के एक मंदिर को दान कर दिया जाए पर अंग्रेजों ने उनकी बात नहींमानी .उनके बाद अंग्रेजों ने सिख साम्राज्य पर कब्जा कर लिया, सिखों को हराने के बाद यह हीरा ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथ लगा, कहा जाता है लॉर्ड डलहौजी अपनी आस्तीन में छुपा कर इसे ब्रिटेन ले गए, ईस्ट इंडिया कंपनी ने ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को खुश करने के लिए यह हीरा उन्हें उपहार स्वरूप दे दिया.. ब्रिटेन की महारानी को इसकी कटिंग पसंद नहीं आई तो उन्होंने इसकी कटिंग दोबारा करवाई जिससे कि यह हीरा 105. 6 कैरेट का रह गया. कोहिनूर इंग्लैंड आने के बाद वह अंग्रेज साम्राज्य जिसके बारे में कहा जाता था कि इसका सूर्य कभी अस्त नहीं होता, का आधिपत्य सारी दुनिया से हटने लगा, वह ब्रिटेन जो कि 1850 तक आधे विश्व पर राज कर रहा था एक के बाद एक सारे देश उससे स्वतंत्र होने लगे. यह बात भी सुनने में आती है कि महारानी में अपनी वसीयत लिखी जिसमें उन्होंने लिखवाया कि यह हीरा ब्रिटेन सम्राज्य का कोई पुरुष नहीं पहनेगा, ऐसा माना गया कि महिलाओं के पहनने पर हीरे का श्राप उन्हें नहीं लगेगा, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ और ब्रिटिश साम्राज्य का दुनिया से अंत हो गया.. यह हीरा इतना बेशकीमती है कि आज तक इसकी कोई कीमत नहीं लगा पाया क्योंकि यह आज तक बिका नहीं सिर्फ एक राजा से दूसरे राजा को इसका हस्तांतरण हुआ है.. या यह बलपूर्वक छीना गया है, यह है कोहिनूर की दिलचस्प कहानी..!!!!

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