अकेलापन आपके स्वास्थ्य के लिए कितना हानिकारक है ! How Bad is Loneliness For Your Health

अकेलापन शरीर को ठीक उतना ही नुकसान पहुंचाता है जितना दिन में 15 सिगरेट पीने से शरीर को होता है। इस शोध में शोधकर्ताओं ने 3,08,849 लोगों पर 148 बार अध्ययन किया है। अकेलेपन से अवसाद, तनाव, व्याकुलता और आत्मविश्वास में कमी जैसी मानसिक समस्याएं होती हैं और साथ ही शारीरिक बीमारियां होने का जोखिम भी बढ़ जाता है।

राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान संस्थान (एनसीआरबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि एक साल में भारत में पैरालिसिस और मानसिक रोगों से प्रभावित 8409 लोगों ने आत्महत्या की। सबसे ज्यादा आत्महत्याएं महाराष्ट्र में (1412) में हुईं। देश में वर्ष 2001 से 2015 के बीच के 15 सालों में कुल 126166 लोगों ने मानसिक-स्नायु रोगों से पीड़ित होकर आत्महत्या की है। पश्चिम बंगाल में 13932, मध्य प्रदेश में 7029, उत्तर प्रदेश में 2210, तमिलनाडु में 8437, महाराष्ट्र में 19601, कर्नाटक में 9554 आत्महत्याएं मानसिक तनाव को कारण हुईं हैं। भारत में 16.92 करोड़ लोग मानसिक, स्नायु विकारों और गंभीर नशे की गिरफ्त में हैं, जबकि जनगणना-2011 के मुताबिक मानसिक रोगों से केवल 22 लाख लोग प्रभावित हैं। यह आंकड़ा भ्रामक है क्योंकि यह केवल परिवार के मुखिया या सदस्य से पूछताछ के आधार पर तैयार किया गया है। परिवार का कोई भी सदस्य परिवार से बाहर किसी को यह बताना नहीं चाहता कि कोई मानसिक विकार है। 99 प्रतिशत मानसिक रोगी उपचार जरूरी नहीं मानते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2020 तक अवसाद/तनाव विश्व में दूसरा सबसे बड़ा रोग होगा। मानसिक रोगियों की इतनी बढ़ी हुई संख्या का उपचार विकासशील ही नहीं, विकसित देशों की क्षमताओं से भी परे होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा एकत्रित किए गए आंकड़ों के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियों और मानसिक रोगों की रोकथाम व इलाज के लिए उपलब्ध संसाधनों के बीच एक बड़ी खाई है। ऐसे में मानसिक रोगियों की बढ़ती संख्या भारत ही नहीं, विश्व भर में चिंता का बड़ा विषय है।
इंसान को हमेशा सामाजिक होने की सलाह दी जाती है ताकि कभी अगर वह मुसीबतों में फंसता भी है तो लोगों के सांत्वना भरे शब्द उसे इस हताश होने और अकेलेपन के गर्त में जाने से रोक सकते हैं। अकेलापन एक बीमारी भी है जिसका आपकी सेहत पर बहुत ही ज्यादा बुरा असर पड़ता है। आज की जीवनशैली ने लोगों को निराश होने की कई वजहें दी हैं। तमाम प्रतिस्पर्धाओं की वजह से, नौकरी छूटने के कारण, रिश्तों में गड़बड़ होने की वजह से आदि कई ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से इंसान न सिर्फ निराश होता है बल्कि अच्छे दोस्तों के अभाव में खुद को बेहद अकेला भी महसूस करने लगता है। ऐसे माहौल में किसी का भी अकेलापन काफी खतरनाक हो सकता है। ।
डिमेंशिया का खतरा – डिमेंशिया यानी कि मनोभ्रंश कई तरह के लक्षणों का एक समूह है। इसमें व्यक्ति किसी भी चीज को याद रख पाने में सक्षम नहीं रहता। डिमेंशिया उम्रदराज लोगों में ज्यादा होती है जब उनके बच्चे उन्हें अकेला छोड़ देते हैं। अधिक उम्र में लोग जब अकेलेपन के शिकार होते हैं तो उनकी याददाश्त कमजोर पड़ने लगती हैं। फिर धीरे-धीरे ये लोग अल्जाइमर या फिर डिमेंशिया जैसी गंभीर बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। मानसिक रोग का खतरा – अकेलेपन की वजह से मानसिक रूप से भी बीमार होने का खतरा काफी बढ़ जाता है। कई अध्ययनों में यह बात साबित हुई है कि बहुत दिनों तक अकेले रहने से लोग सायकोसिस जैसी गंभीर मानसिक बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं।
डिप्रेशन – अकेलेपन से ग्रस्त व्यक्ति को डिप्रेशन होने का खतरा सबसे ज्यादा होता है। ऐसा कई शोधों में भी स्पष्ट हो चुका है। अकेलेपन की वजह से लोगों का आत्मविश्वास कमजोर पड़ने लगता है और उनमें बिना मतलब गुस्सा और चिड़चिड़ापन का लक्षण प्रदर्शित होने लगता है।

अनिद्रा की समस्या – लम्बे समय तक अकेला रहने से नींद से जुड़ी दिक्कतें सामने आने लगती हैं। साथ ही साथ आगे चलकर अनिद्रा जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। नींद पूरी ना होने की वजह से शरीर के हार्मोन्स पर बुरा असर पड़ता है जिससे मसल्स का ग्रोथ भी रुक जाता है।

जल्दी मरने का खतरा – कई शोधों में यह बताया गया है कि अकेलेपन की वजह से मरने वालों की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है। ऐसे लोग समाज से बिल्कुल अलग थलग पड़ जाते हैं और वे सिगरेट शराब का सेवन ज्यादा करने लगते हैं। इस वजह से उनके मरने की सम्भावना भी काफी बढ़ जाती है।
मानसिक रोग को दूर करने के उपाय के लिए अपनों से जुड़े रहें अन्य लोगों से जुड़ा हुआ महसूस करना भी बेहद ज़रूरी है। इससे आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा और खुद की एहमियत व कीमत भी महसूस होगी। अपने परिवार और रिश्तेदारों के साथ थोड़ा वक़्त बिताने की कोशिश करें। ज़रूरी नहीं है कि आप सामने ही बात करें, फ़ोन पर, मैसेज करके या कॉल करके भी बात कर सकते हैं। अगर आपको परिवार वाले या दोस्त सहारा देने वाले नहीं लगते और आप अकेला-अकेला महसूस करते हैं, तो अन्य भी कई तरीके हैं, जिनसे आपको मदद मिल सकती है। जैसे आप ऐसे समूह समारोह में जा सकते हैं जहां आपकी रुचि जगे या कुछ सीखने को मिले। इसके साथ ही आप खेल या किताबों के क्लब में भी शामिल हो सकते हैं, जहां आपको आपके व्यवाहर के लोग मिलेंगे।
ऐसी बहुत सी तकनीके और थेरेपी हैं जिन्हे आप खुद से भी आजमा सकते हैं। जैसे –
1. आराम देने वाली चीज़े करें - ये तो आप खुद जानते ही होंगे कि ऐसी कौन-कौन सी चीज़े हैं जिनसे आपको बेहद आराम महसूस होता है। उनमें से कुछ जैसे नहाना, गाने सुनना या अपने प्यारे कुत्ते के साथ टहलने निकलना आदि शामिल है। अगर आपको लगता है कि इनसे आपके मस्तिष्क को बेहद आराम महसूस होता है तो इन्हे करने के लिए रोज़ाना कुछ समय निकालिये।
प्राकृतिक चीज़ों के बीच रहें - हरे वातावरण के बीच रहना, जैसे पार्क या ग्रामीण इलाके खासकर आपके लिए बेहद अच्छे होते हैं। बल्कि अगर आपके यहां बगीचा नहीं है तो आप अंदर पौधे या पालतू जानवर रख सकते हैं, जिससे आपका मूड ठीक रहेगा रहे और आप प्रकृति के बीच भी बने रहेंगे। ये गतिविधियां आपके लिए तभी ठीक हैं जब आप किसी भी तरह की दवाई या टॉकिंग ट्रीटमेंट (Talking treatments) नहीं ले रहे हैं।

पर्याप्त नींद लेने की कोशिश करें - आप जब चाहे तब आप आराम करें। इससे आपको महसूस और अनुभव होने वाली चीज़ों से राहत मिलेगी।

शारीरिक गतिविधियां करें - रोज़ाना व्यायाम करें, लेकिन यह ज़्यादा कठिन नहीं होने चाहिए। व्यायाम शुरू करने के लिए हल्के-हल्के व्यायामों का चयन करें, जैसे रोज़ कुछ दूरी तक पैदल चलें, योग या स्विमिंग करें। सबसे ज़रूरी चीज़ ये हैं कि आप वहीं चुनें जो आपको करना पसंद हो या जिसमें आपको मज़ा आता हो। इस तरह आप इन गतिविधियों से जुड़े भी रहेंगे। अगर आप शारीरिक रूप से अपंग हैं तो ये सब करने से पहले अपने डॉक्टर से बात करें।
स्वस्थ खाद्य पदार्थ खाएं - आप क्या खाते हैं और कब खाते हैं, इससे आपको अपने अंदर बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिलता है। इसलिए स्वस्थ खाएं और समय पर खाएं, जिससे आपके शरीर को किसी भी तरह का नुकसान न पहुंचे।


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