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प्रिय
आशीष जी इस प्रश्न का उत्तर आपने भी लिखा और आपके अतिरिक्त औरों ने भी
लिखा है । और जवाब बहुत से लोगों को पसंद भी आये हैं । लेकिन मैं इन सबसे
सहमत नहीं हूँ ।
ज़रा
सोचिये आप ने जिन देशों की संस्कृति को निराली या अजीब बताया है क्या वे
सभी देश अपनी संस्कृति को अजीब मानते हैं ये आपने नहीं सोचा है।
जो
व्यक्ति जिस माहौल में रहता है वह उसे अजीब नहीं लगता दूसरों को लग सकता
है ख़ासकर उसे जो छोटी बुद्धी से सोच रहा हो। अन्यथा बुद्धि का प्रयोग करने
वाले को पता है हमारी संस्कृति अन्य किसी भी संस्कृति जिस से नही मिलती
उसके लिये अजीब हो सकती है।
आपने
जो क्रिया कलाप नहीं देखे हैं आप उन्हें अजीब समझने की भूल कर बैठते हैं ।
और हो सकता है आप उन्हें अभद्र या मूढ़ या मूर्ख समझने की भूल इस सोच की
वजह से कर सकते हैं।
आप
जानते नहीं या न जानने का नाटक कर रहे हैं कि वर्षों पुरानी भारतिय
संस्कृति को जब अंग्रेज़ों ने देखा तो अजीब समझने की भूल कर बैठे। और बहुत
सी आयुर्वेदिक किताबों का दहन कर बैठे। जिन में बहुत सी असाध्य बीमारियों
का इलाज था।
अब जब
विज्ञान ने पृथ्वी से बाहर क़दम रखा तो उसी मूर्खों वाली संस्कृत भाषा को
वैज्ञानिक माना जिसका मज़ाक़ उड़ाते वे नही थकते थे। अब उसी को सीखने यहाँ
चले आते हैं।
उसी योगा को विश्व ने अपनाया जिसे वे अजीब मान रहे थे या गँवार मान रहे थे।
अत:
किसी भी देश की संस्कृति अजीब नही है उनका सम्मान करें । जिन प्राचीन
लेखों को विश्व ने मज़ाक़ बताया अजीब बताया हम उन्हें सही साबित करने के
लिये उन्हें विज्ञान से जोड़ कर बताते हैं।
हम
संजय के दूर से महाभारत देखने को टेलीविजन का आविष्कार बताते नहीं थकते
ताकि लोगो को वह अजीब या झूठा न लगे और महाभारत का मज़ाक़ न बने। उनके
हथियारों को प्रमाणु मिसाइल से जुड़ा बताने लगे हैं जब से मिसाइल की खोज
हुई है। रावण के पुष्पक विमान को विमान की खोज बताने लगे हैं जब से विमान
की खोज हो गई है उससे पहले अंग्रेज़ ही नहीं वरन हम भी मज़ाक़ उड़ाने से
पीछे नहीं हटते थे।
अब भारद्वाज ऋषि के बताए नीयमों को फिर से समझने के लिये संस्कृत सीखने लगे नहीं तो हमने संस्कृत को मार ही दिया था।
अजीब तो हम हैं उन लोगों के लिये जिन्हें हम समझने की भूल कर बैठते हैं।
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