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महिलाओं
मैं सेक्स सम्बंध उतना ही मायने रखता है जितना पुरुषों मैं अंतर होता है
अभिव्यक्ति मैं , पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं मैं आत्म नियंत्रण ज़्यादा
होता है शर्म होती है हया होती है संकोच होता है दरसल महिलाओं के मस्तिष्क
की बनावट अलग होती है शारीरिक सम्बंध उनकी भावनाओं से जुड़े होते है।नारी
मन बहुत ही सुलभ होता है , हम जीवन की आपा धापि मैं ज़िम्मेदारियों मैं कुछ
कठोर और काफ़ी प्रायोगिक हो जाते है छोटी छोटी ख़ुशियाँ छोड़ देते है
इमोशन को मन के किसी कोने मैं बंद कर देते है नारी मन काफ़ी सरल होता है
बिलकुल एक छोटे बच्चे की तरह जो ढेर सारा प्यार चाहता है बहुत ध्यान चाहता
है छोटी छोटी ख़ुशियाँ चाहता है वे कभी संवेगो को छिपाती नहीं बल्कि खुलकर
बताती है की मैं नाराज़ हुँ मुझे मनाओ, मैं ख़ुश हूँ मुझ मैं शामिल हो जाओ,
मुझे समझो , मुझे समय दो नारी का मन बहुत बारीक होता है वे छोटी छोटी
बातों को , छोटी छोटी यादों को काफ़ी सम्हाल कर रखती है उन्हें आप मैं ऐसे
बदलाव जो उनसे आपको दूर करते है काफ़ी जल्दी महसूस हो जाते है उनका
अचेतननुमान जिसे इंग्लिश मैं unconscious inference कहते है और साधारण भाषा
मैं छटी इंद्री पुरुषों की अपेक्षा काफ़ी अच्छी होती है, वे अपनी पीठ की
तरफ़ से भी महसूस कर लेती है की उन्हें कोई ताड़ रहा है और इसका कारण यह है
की उनका अचेतन नियंत्रण काफ़ी अच्छा होता है क्योंकि वे अपनी बहुत सारी
इकछाओ को दबा कर रखती है ये नारी मन की प्रकृति है उनकी मजबूरी नहीं । आज
कितना भी आधुनिकीकरण क्यों ना हो जाए भारतीय महिला जिनके अचेतन मैं भारतीय
आधरूप है उनके लिए शारीरिक सम्बंध ज़रूरी हो सकते है पर प्राथमिक नहीं , आज
भी उनके लिये ममता , त्याग , समर्पण , पति की सेवा , अपने बच्चों के लिए
अथाह प्रेम अपनी गृहस्थी की चिंता , अपनी इज़्ज़त अपना सुआभिमान ही
सर्वोपरि है।
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