मुग़ल सम्राट अकबर के बारे में कुछ दिलचस्प तथ्य




* अकबर के बारे में यह कहा जाता है कि वह बेहद सहिष्णु था और सभी धर्मों के संतों फकीरों औलियाओं से और रयत से इज़्ज़्त से पेश आता था मगर यह सब केवल झूठ है दर असल उसकी यह तस्वीर अकबरनामा और आईने अकबरी जैसी किताबों में मिलती है असल जिंदगी में वह बेह्द तुनकमिज़ाज़ , सनकी दुर्दांत , ख़ूँख़ार और बदमिज़ाज़ था |
** फिल्मों में जैसी अकबर की शख्सियत दिखाई गई है इसके ठीक उल्टे वह एक बदसूरत और बदमिजाज शख्स था उसके चेहरे पर काला मस्सा था और वह लँगड़ा कर चलता था , हर वक्त नशे में धुत्त रह कर अनाप शनाप बकता था।
** अकबर ताउम्र एक जाहिल अनपढ़ की जिंदगी जिया , बेशक वह बादशाह था मगर वह लिखना पढ़ना नहीं जानता था।
** अकबर अपनी माँ के बनिस्बत अपनी दाई महामंगा के ज़्यादा करीब था , उसकी सनक कुछ इस हद तक थी कि उसने अपनी दाई के बेटे अदम ख़ान को मरवा दिया था
**अकबर ने अपने उस्ताद बैरम खान की बेवा से निकाह किया था , हिंदुस्तानी रहन सहन के ठीक उल्टे यह काम था जहां गुरु की पत्नी को मां सा दर्ज़ा मिलता है , उसी खातून को अकबर ने अपनी बीवी बना लिया।
**फिल्मों में जैसा बताया गया है कि अकबर ने जोधा बाई से शादी की थी यह ग़लत बात है क्योंकि दस्तावेज़ों में अकबर की किसी हिंदू रानी से शादी करने का ज़िक्र नहीं मिलता अकबर के बेटे जहाँगीर की हिंदू बीवी का नाम जोधा बाई मिलता है ,कहीं कहीं यह हरखा बाई है |
**अकबर और हेमू पानीपत की दूसरी जंग लड़े थे मगर अकबर उस वक्त महज़ तेरह चौदह साल के थे असल मे अकबर की तरफ से बैरम खान यह जंग लड़े थे और उन्हीं के फौजी जौहर के चलते यह जंग मुगलो ने जीती । हुआ दरअसल यह कि एक तीरंदाज़ को बैरम खान ने हेमू को निशाना बनाने के लिए खास तौर से तैनात किया था , तीरंदाज़ ने तीर चलाया और वह हेमू की आंख को जा लगा यह देख हेमू की फौज में भगदड़ मच गई। इस जंग में जीत पाने के तुरंत बाद हेमू और उनके तमाम जख्मी सिपाहियों की अकबर के सामने पेशी हुई जहां कहते हैं कि चौदह साला लड़के अकबर ने एक तो तलवार से हेमू का सिर कलम किया और दूसरे तमाम हरे हुए फौजियों और काफिरों की खोपड़ियों से मीनार बनाने का हुक्म सुनाया ।
**अकबर एक आत्म मुग्ध शख्स था उसके नव रत्नों में वही लोग शामिल थे जो उसकी चिरौरी करते थे मसलन मुल्ला दो प्याजा जो शाही खानसामा के हुद्दे पर थे वह उनके रिश्ते में साले साहब लगते थे और उनके सलाहकार भी थे, जनाब अबुल फजल साहब ने अकबर नामा और आईने अकबरी जैसे ग्रंथ अकबर की तारीफ में गढ़े थे , इन्हीं के भाई जनाब फ़ैज़ी साहब जो शायरी करते थे और दुनियावी चीजों से कोई वास्ता जिनका नहीं था उनको अकबर ने अपने बेटे जहांगीर (सलीम) के गणित शिक्षक के रूप में नियुक्त किया था । फ़ैज़ी भी नवरत्नों में शामिल थे।
तानसेन जो महान संगीतज्ञ और गायक थे उनने राग मियां की मल्हार इन्हीं अकबर बादशाह की शान में बनाया था बाद में उनने अपना मज़हब बदल लिया और मियां तानसेन कहलाए
राजा बीरबल जिनके बारे में कहा जाता है कि उनकी बुद्धि बड़ी पैनी थी और हाजिरजवाब थे वह भी अकबर के खास थे क्योंकि बादशाह के साथ हंसी मजाक और चकल्लस किया करते थे यहां यह बात गौर करने लायक है कि अकबर बीरबल के किस्से जो अमूमन हर भारतीय अपने बचपन में पढ़ता है वह असल मे गढ़े गए थे । लगभग यही कहानियां और प्रसंग आपको दक्षिण के राजा कृष्णदेव राय और तेनालीराम की कहानियों में भी मिलते हैं , राजा कृष्णदेवराय अकबर के दादा बाबर के जमाने के हैं।
बीरबल ने बाद में दीन ए इलाही मज़हब स्वीकार कर लिया जिसके संस्थापक अकबर ही थे । बीरबल एक कवि थे जिनको अकबर ने अफगानों के साथ लड़ने भेज दिया , इस जंग में मुगलों की हार हुई और बीरबल मारे गए।
बीरबल में ऐसी कोई खास बात नहीं थी कि उन्हें नवरत्नों में शामिल किया जाए सिवाय इसके कि वह शाही मसखरे थे जिनसे बाते कर अकबर अपना मन बहलाया करता था।
** राजा मानसिंह जो अकबर की फौज के सिपहसालार थर वह भी अकबर के रिश्ते में साले ही लगते थे।
** अब्दुल रहमान खानखाना अकबर के सौतेले साहबज़ादे थे
अन्य तथ्य
**अकबर और मेवाड़ के महाराणा प्रताप समकालीन थे , मेवाड़ के राजघराने और मुगलो की खानदानी दुश्मनी थी जो बाबर हुमांयू के ज़माने से चली आ रही थी जिसे बाद में अकबर ने भी निभाया।
** मुग़लिया तख्त पर जब अकबर गद्दिनशी था तो मंदिरों की तोड़ फोड़ और लूटपाट की सरकारी नीति थी यह बात उतनी ही सच है जितनी यह कि अकबर खुद को चंगेज़ और तिमूर का वारिस मानता था |अगर बात करें अकबर द्वारा की गयी लूट पाट और तोड़ फोड़ कि तो यह कितनी बड़ी थी इस बात का अंदाज़ा आप इस बात से लगाइएगा कि सन १५६७ में जब ५० हज़ार सैनिकों की मुगल फौज ने करीब दो महीने चित्तौड के किले की घेराबंदी की और इसके बावजूद भी उन्हें भरोसा नहीं था कि वह जीत पाएँगे तब अकबर ने अजमेर के चिश्ती से जीत की दुआ माँगी|
अबुल फ़ज़ल ने लिखा है कि क्या बच्चे बूढ़े और महिलाएँ अकबर के नवरत्न राजा तोडरमाल की मौजूदगी में इन सब के सिर क़लम किए गये जिन्होने बादशाह के आगे झुकने से इनकार किया , इसी लड़ाई के दौरान तीसरा जौहर हुआ और अगले दिन सका के तहत कई राजपूत सैनिकों ने मुगलों को काट डाला मगर क्योंकि उनका संख्याबल कम था तो कोई भी राजपूत सैनिक अंत में नहीं बचा | राजपूतों की वीरता देख कर नवरत्नों मे शामिल अबुल फ़ज़ल उनकी तारीफ करने से खुद को रोक नहीं सका , इस लड़ाई के बाद चित्तौड के महाराणा उदय सिंह अरावली की दुर्गम पहाड़ियों से शासन करते रहे इसी जंग के ठीक ९ साल बाद अकबर की मुग़लिया फौज का सामना महाराणा प्रताप से हल्दी घाटी में हुआ जो मेवाड़ के राजा थे |
**हल्दी घाटी की लड़ाई में मुगलो के एकबारगी पैर उखड़ गए थे महाराणा प्रताप की तलवार के खड़े वार ने कई मुगलों को सिर से पांव तक दो टुकड़ों में काट डाला , यह देख कर मुगल फौज के होश फाख्ता हो गए अगर मानसिंह न होते तो शायद ही मुगल इस लड़ाई में कामयाब होते , अपने इरादों में मुगल तो खैर वैसे भी कामयाब न हो पाए क्योंकि राणा प्रताप इस लड़ाई में बच गए थे और फिर गुरिल्ला पद्धति से उन्होंने मुगलो से जंग कायम रखी।
**गोस्वामी तुलसीदास अकबर के समकालीन थे उनके चर्चे अकबर ने काफ़ी सुन रखे थे लिहाज़ा एक रोज़ उसने उन्हें दरबार में पेश होने का हुक्म सुनाया तय दिन और वक्त में गोस्वामी तुलसीदास उस दरबार में पेश हुए तो अकबर ने चमत्कार दिखाने की फरमाइश की | गोस्वामी तुलसीदास जी सत्तचरित्र और सच्चे भक्त थे हालाँकि उन पर हनुमान जी की कृपा थी मगर फिर भी वह अपनी सिद्धियों का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं किया करते थे , उन्होने जब बादशाह की फरमाइश ठुकरा दी तो आग बाबूला हो कर अकबर ने उन पर नाफ़रमानी का इल्ज़ाम मढ़ कर उन्हें क़ैद खाने में डाल दिया यहाँ गौर करने लायक बात यह है कि इसी अकबर के बारे में उसके दरबारी दस्तावेज़ों में लिखा है कि वह नंगे पाँव चलकर सलीम चिश्ती के ठिकाने पर जाता है और उनके आयेज झोली फैला कर उनसे औलाद देने की गुज़ारिश करता है | आप में से जिन लोगों ने मुग़ले आज़म देखी होगी वह इस बात से वाकिफ़ हैं क्योंकि फिल्म के शुरू होते है यह वाक़या दिखाया गया है दूसरे यह कि हालिया सालों में जोधा अकबर नाम की फिल्म आई थी उसमें भी अकबर का किरदार चिश्ती की कव्वाली में नाचते हुए दिखाया गया है , यहाँ चिश्ती तो उसके हम मज़हब थे मगर उसका रवैया गोस्वामी तुलसीदास को लेकर बिल्कुल ग़लत रहा , उसने गोस्वामी तुलसीदास की दरबार में पेशी कराई , उन्हें हुक्म दिया जिसे न मानने पर उसने गोस्वामी तुलसीदास को क़ैदखाने में डाल दिया , संतों फकिरों से मुखातिब होने का यह कैसा तरीका है ? कहने वाले कहते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास वाली बात बिल्कुल झूठ है क्योंकि एक तो अकबर के दरबारी दस्तावेज़ में ऐसी किसी बात का कोई ज़िक्र नहीं है जब बादशाह अकबर ने गोस्वामी तुलसीदास को सज़ा सुनाई हो क्योंकि शाही हुक्म को दस्तावेज़ में लिखा जाता है और दूसरे यह कि गोस्वामी तुलसीदास की अपनी रचनाओं में भी इस प्रसंग का कोई उल्लेख नहीं है मगर मेरा तर्क यह है कि कोई भी व्यक्ति चाहे छोटा हो या बड़ा अपने कड़वे अनुभव भूलना ही चाहता है कोई उसे लिख कर नहीं रखता , गोस्वामी तुलसीदास जी तो संत महात्मा की श्रेणी में आते हैं वह बला क्यों कर इस बुरे अनुभव को लिखते , दूसरे वह गैर राजनैतिक व्यक्ति थे और व श्रीराम की भक्ति में डूबे थे लिहाज़ा उन्होने इस प्रसंग को नहीं लिखा तो कोई बड़ी बात नहीं थी यह उनकी इच्छा थी| दूसरा तर्क यह कि हर शाही हुक्म को दरबारी दसतवेज़ो में जगह मिले यह मुमकिन नहीं अकबर की ज़हानियत को देखते हुए ऐसा नामुमकिन भी नहीं लगता , याद करें वह बीर बल की खिचड़ी वाला प्रसंग जहाँ एक बूढ़े आदमी को बेवजह अकबर ने सज़ा ए मौत सुनाई थी , इस सज़ा ए मौत का ज़िक्र भी किसी दरबारी दस्तावेज़ो में नहीं मिलता मगर फिर भी अकबर को मानने वाले लोग बीरबल के क़िस्सों को भी मानते हैं तो जाहिर है अकबर अपनी सनक में फकीरों और संतों की बेहूरमति कर सकता है |
** बुढापा आते आते अकबर का मज़हबी कड़वापन धीरे धीरे कम होने लगा इतना कि उसने नया मज़हब ही बनाया दीन ए इलाही के नाम से , इसी नाम से प्रयाग का नाम बदलकर इलाहाबाद रखा गया यही वजह है कि आज भी आलिम उन्हें सच्चा मुसलमान नहीं मानते अब इसे अकबर का पछतावा कहें या भलमनसाहत या दिखावा या फिर मजबूरी ही बाद के सालों में अकबर यह जान गया था कि अगर यहां राज करना है तो यहां के लोगों क दिल दुखा कर राज़ नहीं किया जा सकता लिहाज़ा अपनी उम्र के आखरी पड़ाव में उसने खुले तौर पर गैर मुसलमानों को परेशान करने से परहेज़ किया।
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जैसा मैं पहले लिख चुका हूँ अकबर के दरबार में तकरिबन हर प्रसिद्ध हिंदू श्रद्धालु या भक्तो संतों की पेशी होती जहाँ उन्हें चमत्कार करने को कहा जाता , न करने पर या तो उनको क़ैद कर लिया जाता या तो मार डाला जाता , ऐसा ही क़िस्सा ज्वालादेवी पीठ से जुड़ा हुआ है अकबर ने देवी के भक्त ध्यानू को चमत्कार दिखाने को कहा न दिखाने पर उसे यातना दी गयीं और वह मारे गये किंतु किन्हीं विचित्र परिस्थितियों के चलते व जीवित हो उठे , बाद में अकबर ने खुद ज्वलदेवी मंदिर जाने की सोची जहाँ उसने अखंड ज्वाला को बुझाने की भरसक कोशिश की मगर कामयाब न हुआ तो सोने की छतरी से जवाला को ढँकने की कोशिश की , ज्वलाओं ने उस सोने की छतरी को किसी और धातु से बदल दिया ऐसी किंवदन्ती है , वैसे इस बारे में आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव की पुस्तकअकबर महान में लिखा है कि अकबर ने उस मंदिर को भ्रष्ट कटने के लिए दीवारों को जानवरों और इंसानों के खून से रंगा गया लगभग यही बातें थोड़े बहुत अंतर के साथ विनसेंट स्मिथ की किताब अकबर दी ग्रेट मुगुल में लिखा गया है |

कुछ और लोगों ने अन्य मुगल बादशाह के बारे में जानना चाहा है मेरी गुज़ारिश है कि ऐसे में अलग सवाल पोस्ट किया जाए जहां सम्बंधित बादशाह के बारे में जवाब दिया जा सके , यह सवाल खास तौर पर अकबर के बारे में पूछा गया था लिहाज़ा और किसी मुगल बादशाह के बारे में लिखना जायज़ नहीं होगा

यह जवाब मैने कल ही लिखा है और इस जवाब को करीब सवा दो हज़ार लोगों ने देखा और डेढ़ सौ के करीब इसे अपवोट मिलें हैं , जाहिर है जवाब पसंद किया जा रहा है , मैं जल्दी ही मुगल बादशाह अकबर के बारे में और अनसुने किस्से और तथ्य लिखूंगा |
आगे के किस्से इस पोस्ट को मिलने वाले upvotes को देख कर लिखूंगा , अकबर और मुगलो के बारे में अनकहे अनसुने किस्से जानने के लिए इस जवाब को अपवोट करते रहें

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